उत्तराखंड में समाचार पत्र हुये सूचीबद्ध तो कई हुये निरस्त। 

 (समाचार पत्रों को निरस्त करने से पूर्व समय देना चाहिए था) 

          उत्तराखंड राज्य के स्थानीय समाचार पत्र पत्रिकाओं को सूचीबद्ध किये जाने की रिपोर्ट विभाग ने जारी कर दी है। खुशी की बात है परन्तु जरा सोचिए कि जिन समाचार पत्रों को आपत्ति लगाकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया है उन समाचार पत्रों के मालिकों पर क्या बीती होगी जिन्होंने कोरोना काल का दंश झेला हो।जब राज्य के पत्रकार विषम परिस्थितियों से जूझ रहे है तो ऐसे में सूचना विभाग की ओर से तुकलगी फरमान जारी कर कई समाचार पत्रों को आपत्ति दर्ज ना होने पर उनकी सूचीबद्धता निरस्त कर दी गयी है। क्या ये उचित है! ऐसे में शासन की तरफ से जरा भी नही सोचा गया कि विषम परिस्थितियों में समाचार पत्रों को राहत देनी चाहिए थी। उनको थोड़ा समय देना आवश्यक नहीं समझा गया।

         इस वक्त कोरोना काल चल रहा है। वैसे तो कोरोना संक्रमण को लेकर विभागों के अधिकारी नदारत है लेकिन सोचने की बात ये है कि यदि विभागों में स्टाफ नही आ रहा है और अधिकारी कार्यालयों में बैठ नही पा रहे है तो उन समाचार पत्रों को निरस्त करने से पूर्व समय देना चाहिए था।स्थानीय समाचार पत्रों के मालिकों को इन तथ्यो की गहराई समझनी होगी । राज्य के अनियमित हुए समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों में हम सब हो सकते है इसलिए सूची जारी होने पर ऐसे संतुष्ट होने की जरूरत नही है। अभी देहरादून चैप्टर बरकरार है। यही हाल देहरादून के समाचार पत्रों का भी हो सकता है, इस वक्त सरकार की नीतियों पर हमे नजर रखने की आवश्यकता है।


            समाचार पत्रों के कई प्रतिनिधि अनियमित होने पर सड़क पर आ गये है। सरकार की इस दोगली नीति को हमें समझना होगा और अपनी बात उन्हें समझानी होगी।समाचार मालिको से गुजारिश है कि यदि किसी साथी के साथ समाचार पत्र में कोई दिक्कत आती है तो इसके लिए उत्तराखंड पत्रकार महासंघ से जुड़े जिले के पदाधिकारी व प्रदेश के पदाधिकारियों को अवगत कराना होगा ताकि समयानुसार इसके निस्तारण का हल निकाला जा सके।

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